Mobile addiction in Kids

बच्चों में मोबाइल की लत : इस समस्या का समाधान होना चाहिए

दोस्तों आजकल देखा जा रहा है की गैजेट्स के प्रति बच्चों का झुकाव (बच्चों में मोबाइल की लत) बहुत ही तेजी से बढ़ता जा है, शाम होते ही मोबाइल फोन पर खेलना और कुछ वीडियो देखना एक आदत बनटी जा रही है और अंततः एक दिनचर्या बन जाएगी। और इस चीज को रोकने के लिए किसी के पास भी कोई उपाय मिलता हुआ नहीं दिख रहा है।

और सच में येही है कि बच्चे बड़ों को देखकर ही सीखते हैं, यदि परिवार के सभी सदस्य किताबें पकड़कर बैठें तो बच्चों में भी छोटी उम्र से ही किताबें पढ़ने की आदत लग जाती है। यदि बड़ों के हाथ में हमेशा टीवी का रिमोट, फोन या लैपटॉप पर रहेगा, तो जो बच्चे इसे देखेंगे, वे उसका देखा देखि करेंगे और उसकी नकल करेंगे।

बच्चों में मोबाइल की लत, बहुत खतरनाक बीमारी

और इस से होता ये है की गैजेट्स के प्रति बच्चों का आकर्षण काफी (Mobile addiction in Kids) बढ़ जाता है। शाम को मोबाइल फोन पर खेलना और कुछ वीडियो देखना एक आदत बन जाती है और अंततः एक दिनचर्या बन जाती है। व्यस्त माता-पिता अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते, इसलिए वे उनके हाथ में कोई भी फोन थमा देते हैं, वीडियो चलाते हैं या कोई गेम खेलते हैं। इसके बाद धीरे-धीरे यह बच्चों को पसंद आने लगता है और इसे लत में बदल लेता है।

आज और कल, दादी और दादा अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता रहे हैं, लेकिन वे किसी भी मोबाइल फोन पर टाइमपास भी कर रहे हैं। बच्चों में स्क्रीन टाइम बढ़ने का कारण यह है कि उन्हें दूसरी दुनिया या डिजिटल दुनिया में समय बिताना पड़ता है।

गैजेट्स उन लोगों के लिए टाइम पास है जो कोरोना के कारण बाहर भी नहीं निकल पा रहे हैं। घर में कहीं भी वाई-फ़ाई उपलब्ध है. मोबाइल, स्मार्ट फोन, लैपटॉप, डेस्कटॉप, टैबलेट और आईपैड हर जगह हैं। इन्हें देखकर उन्हें किसी YouTube वीडियो की याद आएगी जिसे वे देखना चाहते हैं या किसी वीडियो गेम की याद दिलाएंगे जिसे वे खेलना चाहते हैं।

बच्चों को मोबाइल देने के नुकसान

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की कहे के मुताबिक, 5 साल से कम उम्र के आपके बच्चे के लिए दिन में एक घंटे से ज्यादा गैजेट स्क्रीन देखना अच्छा नहीं है। बड़े बच्चे को फोन देते हैं और उन्हें शांत बैठने के लिए कहते हैं। इससे उनकी घर में इधर-उधर घूमने की आदत छूट जाती है।

पेरेंटिंग सलाहकार और ‘व्हाट पेरेंट्स आस्क’ संस्था के संस्थापक डॉ. देब मित्रा दत्ता का कहना है कि एक जगह बैठकर समय बिताना और मोबाइल फोन देखना एक अकल्पनीय उम्र में एक आदत बन जाती है।

बड़े बच्चों में ऑनलाइन गेम की लत जानलेवा बन गई है। शारीरिक और मानसिक रूप से, बच्चे मोबाइल फोन पर अत्यधिक निर्भर होने लगे हैं। इसके साथ ही अगर उनके हाथ में फोन न हो, इंटरनेट न हो तो उन्हें घुटन महसूस होगी। एक समय तो माता-पिता को भी नहीं पता होता कि दिन-रात सोशल मीडिया में लगे रहने वाले किशोर क्या कर रहे हैं।

इंटरनेट की दुनिया के नुकसान

और नतीजा ये हुआ है की अब बच्चों को इंटरनेट की दुनिया सामान्य दुनिया से ज्यादा खूबसूरत लाग्ने लगी है। विशेषकर किशोरों को अक्सर अपने माता-पिता द्वारा डाँटा जाना पसंद नहीं होता। इसके अलावा, अगर वे अपनी तुलना किसी और से करते हैं, तो वे इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। यही कारण है कि वे इंटरनेट की दुनिया में खुशी ढूंढते हैं और वास्तविक जीवन में सोशल मीडिया पर मिलने वाले लाइक का आनंद लेते हैं।

बच्चों को मोबाइल से कैसे बचाए

देखिये ये मामला बड़ा ही पेचीदा है लेकिन ये जन न भी जरूरी है की अगर ईसपे धन नहीं दिया गया तो ये खतरनाक भी है इसी लिए बच्चों की धीरे-धीरे इनडोर गेम्स की आदत डालने पर ध्यान दें। बड़ों को बच्चों के साथ खेलने की आदत बनानी चाहिए। यदि वयस्क स्क्रीन पर बिताए जाने वाले समय में कटौती करते हैं, तो बच्चों द्वारा भी ऐसा करने की संभावना अधिक होती है।

इसे बंद करके और बच्चों के लिए इंटरनेट कनेक्शन के बिना कदम उठाकर कुछ समय के लिए वाईफाई पर नियंत्रण रखें। यदि आप किसी स्क्रीन नशा मुक्ति केंद्र में जाने तक स्थिति पर ध्यान दिए बिना आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करते हैं, तो इससे बच्चों पर भी फर्क पड़ेगा।


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